भंग के उमंग के तरंग के
झांझ के सितार के मृदंग के
आ गए अबीर के गुलाल के
पल ये संगसाथ के धमाल के
अंग अंग फूलती कुंअर कली
मंद मंद मेदनी पवन चली
मन मलय तन प्रलय अनंग के
पल कमल किलोल के कलाल के
आ गए अबीर के गुलाल के
पल ये संगसाथ के धमाल के
देह नेहपान को तृषित द्रवित
लौ जगी धूम्र छंट गए दमित
डाल डाल डोलते विहंग के निहंग के
फुर्र हुए छण सभी कसाल के
आ गए अबीर के गुलाल के
पल ये संगसाथ के धमाल के
[2:17AM, 01/04/2015] jgdis Gupt:
झांझ के सितार के मृदंग के
आ गए अबीर के गुलाल के
पल ये संगसाथ के धमाल के
अंग अंग फूलती कुंअर कली
मंद मंद मेदनी पवन चली
मन मलय तन प्रलय अनंग के
पल कमल किलोल के कलाल के
आ गए अबीर के गुलाल के
पल ये संगसाथ के धमाल के
देह नेहपान को तृषित द्रवित
लौ जगी धूम्र छंट गए दमित
डाल डाल डोलते विहंग के निहंग के
फुर्र हुए छण सभी कसाल के
आ गए अबीर के गुलाल के
पल ये संगसाथ के धमाल के
[2:17AM, 01/04/2015] jgdis Gupt:
No comments:
Post a Comment