Sunday, July 5, 2015

दृष्टि पथ्र मेँ जो भी आएं साथ कर लूँ

मां वीणापाणि के चरणों में एक प्रार्थना

दृष्टि पथ्र मेँ जो भी आएं साथ कर लूँ
नेह बांटूँ प्रीति अपने अंक भर  लूं
मै बुहारूं दुख पीड़ाएं हृदय की
क्रंदनों के करकटों को स्वाह कर लूं
मेरी करुणाएं सदा हों शक्तिशाली
श्रेष्ठता के कार्य करते मै रुकूं ना
मन उमगता ही रहे झंझावतों में
नेह के दीपक जलाते मैं थकूं ना

शब्द की, सामर्थ्य की  ,साहित्य की,
साधना कर बांट दूं , अर्जन सभी
रुक न जाऊं, थक न जाऊं कर्म पथ पर
 शेष हैं सत्कार्य बहुतेरे अभी
हर्ष विकिरण कार्य में जीवन खपे
ध्येय पर श्रद्धा से किंचित मै डिगूं ना
मन उमगता ही रहे झंझावतों में
नेह के दीपक जलाते मैं थकूं ना
12:08PM, 6 Jul - jgdis Gupt:


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