Wednesday, March 13, 2013

हो सकी इसलिए भ्रष्ट,मति भाई जी  सरकार की  

हो सकी इसलिए भ्रष्ट,मति भाई जी  सरकार की  
 करके केवल टिप्पणी  खाना पूरी हर बार की 
क्या कोइ उपकरण है कवि जी आपके पास 
जिसे साध कर बंध सके भारत का विश्वास 
भारत का विश्वास सदा पुरुषार्थ रहा है 
अपना अतीत संघर्षों का इतिहास रहा है 

 कौन  राष्ट्रहित प्रथम हमारा भाव खा  गया 
कैसे महापुरुष  वृद्धों में ईर्ष्या का भाव आ गया 
जब  सीख लिया हमने मूल्यों का पतन देखना 
एकान्तिक  जीवन में ही सुख व्यसन देखना 
हम दंड नहीं  दे सके तटस्थों को इस युग में 
इसीलिये है अधोगति हम सबकी इस युग में 

Thursday, March 7, 2013

जमीं  की बात करता हूँ जमीं  वालों की बात करता हूँ
जिनका वास्ता नहीं वतन से उनसे मुक्का लात करता हूँ

जमीर बेच के सर जमीं बेच के जो लोग जेवरों से लदे


अपने वजूद से मिलना ,अपनी ही सांसों में पिघलना

बहुत खूब लिख दिया है सफर नामे के साथ चलना

बधाई


देख तेरा दीवाना कैसे मारा मारा फिरता है 

देख तेरा दीवाना कैसे मारा मारा फिरता है 
घर से लेकर घाट तलक ये बेचारा फिरता है 

चाह  में तेरी चातक सा पीहू पीहू रटता है 
चौराहों से चौबारों तक आहें भरता फिरता है 

कई बरातें  हुईं सुहागन ,कितने गधे चढ़े घोड़ों 
वर मालाएं  मन में लेकर एक कुवांरा फिरता है 

यूँ  कहना अनुभूति  मुश्किल,, पर समझो 
गर्म धुप में नंगे तन पर ज्यूँ अंगारा फिरता है 

उसने तो मन बना लिया ,,तेरे गले लटकने का 
जबतक घर न बस जाये एक बंजारा फिरता है 

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