Wednesday, October 28, 2009

गीत


ह्रदय योग कर दे ,हमें मीत कर दे

चलो कोई ऐसा ,लिखें गीत, गायें।

सूखी पडी है, नहर नेह रस की

पतित पावनी गीत गंगा बहायें ॥


दृग्वृत पे मन के दिवाकर जी डूबे

उचटते हुए प्रीत बंधन हैं ऊबे ।

कुसुम चाव के ,घाव खाए पड़े हैं

गीत संजीवनी कोई इनको सुनाएँ ॥

ह्रदय योग कर दे ......

चकाचोंध चारों तरफ़ ,फ़िर भी कोई

तिमिर के घटाटोप पे आँख रोई ।

कहींपर निबलता कहीं भूख बिखरी

इन्हे ज्योति के गीत देकर जगाएं ॥

ह्रदय योग कर दे ......

घटाओं को तृप्ति बरस कर ही मिलती

हमीं पड़ गए संचयों में अधिकतम ।

इसी से हुए प्राण बेसुध विकल कृष

गीत अमृत इन्हें आज जी भर पिलायें ॥

ह्रदय योग कर दे ........

Thursday, October 1, 2009

शरद पूर्णिमा की शुभ कामनाये


चांदनी हो मुबारक सभी को चाँद आया है रस बरसाने
लेके अंगडाई अरमान जागे, फ़िर हरे हो गए हैं फ़साने

वक्त के घोल में तल्खियों को ,यूँ खंगाला बहुत वक्त मैंने
दाग दिल के मगर सख्त निकले ,आगये चांदनी में रुलाने

सूखी हुई झाडियों में ,आज खिल आई है फ़िर से कोंपल
उम्र दौडी है पिछली गली में ,गुजरे कल को गले से लगाने

हर सदी लेके आई सदी को ,बिना पूंछे ही नेकी बदी को
आप आए न दामन झटक कर,चांदनी आ गयी फ़िर बुलाने

याद के बुलबुले झाग बन कर, छा गए उम्र की वादियों में
आँख छलकीहै शायद तुम्हारी,बनके शबनम लगी मनभिगाने


LinkWithin

विजेट आपके ब्लॉग पर