मै तो उसका समझ रहा था कच्चा पानी
लेकिन वो तो जीत गया करके मनमानी
वो जीता तो सच है,, मुझको बुरा लगा
लेकिन कहा किख़ुद मैंने की थी नादानी
अच्छाहुआ जोउसने अपनी लाज बचाली
आज भले चंगों की नीयत निकली कानी
नमक मिलेगा आटे में तो चल जाएगा
यार हुए, आमादा ..कर डाली शैतानी
हम कैसे उम्र दराज़ हुए? हैरत होती है
अब तक करते मिलते हैं बातें बचकानी
Tuesday, June 23, 2009
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wah gafil ji, lajawaab rachna ke liye badhai sweekaren.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शानदार रचना
ReplyDeleteबधाई
गर्दू जी आपकी अगली रचना का इंतजार है.
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