नदिया से तटबंधों की तकरार पुरानी है
सीता सहनशीलता ने दुर्गा की ठानी है
सूर्य उदित हो चला तमस छाया हो जाएगा
संकल्पों की धार नई तलवार पुरानी है
कर में लिए कृपाण काटते स्वयम हीनताएं
हृदय विवर से खींच निकाले सभी दीनतायें
समता की शक्ति धारण करने आव्हान करें
अन्यायों से , अनाचार से , रार पुरानी है
दुर्गम दुर्गों पर मन के अपना अधिकार रहे
निर्बल निर्धन सबल धनी से सम व्यवहार रहे
शत्रु रहित सतपथ पर नित जीवन निर्बाध चले
प्रार्थनाओं के स्वर में यह मनुहार पुरानी है
Tuesday, March 31, 2009
Sunday, March 29, 2009
Wednesday, March 18, 2009
Wednesday, March 11, 2009
ग़ालिब को छूना है ,धरती पर चलना है
काँटों की रिवायत को .फूलों में बदलना है
कोई राह नहीं लेकिन ,परवाह नहीं बिल्कुल
बस जिद है अपनी भी ,उस पार निकलना है
संगसार किया सबने जब प्यार किया हमने
शीशे के घरोंदों को, ताजो में बदलना है
बारूद पे बैठे हो ,आतिश से न खेलो तुम
इस मौजे जवानी का दस्तूर फिसलना है
इस दर्दे मोहब्बत को गर्दूं ने बहुत झेला
अब के तो बरसना है अब के तो पिघलना है
काँटों की रिवायत को .फूलों में बदलना है
कोई राह नहीं लेकिन ,परवाह नहीं बिल्कुल
बस जिद है अपनी भी ,उस पार निकलना है
संगसार किया सबने जब प्यार किया हमने
शीशे के घरोंदों को, ताजो में बदलना है
बारूद पे बैठे हो ,आतिश से न खेलो तुम
इस मौजे जवानी का दस्तूर फिसलना है
इस दर्दे मोहब्बत को गर्दूं ने बहुत झेला
अब के तो बरसना है अब के तो पिघलना है
मै होना चाहता हूँ
निर्मल सुखद बहती हुई जलधार,
अनवरत धूप में तरु एक छायादार
यही हो भूमिका व्यवहार का आधार
मै होना चाहता हूँ स्रोत अमृत द्वार
कर्म रण में समर के शौर्य का श्रंगार
निर्माण में सातत्य संलग्नता स्वीकार
प्रतिक्षा का समापन ,तोष का अनुस्वार
मै होना चाहता हूँ स्रोत अमृत द्वार
अनवरत धूप में तरु एक छायादार
यही हो भूमिका व्यवहार का आधार
मै होना चाहता हूँ स्रोत अमृत द्वार
कर्म रण में समर के शौर्य का श्रंगार
निर्माण में सातत्य संलग्नता स्वीकार
प्रतिक्षा का समापन ,तोष का अनुस्वार
मै होना चाहता हूँ स्रोत अमृत द्वार
Monday, March 9, 2009
नजर में हूर उतरे और सुखन से नूर बरसेमुकाबिल हो अगर गर्दूं समझ लेना कि होली हैबधाई रंग-ऐ-मौसम की हवाएं गोद भर लायेंकलम जब रंग बरसाए ,समझ लेना कि होली है
नजर में हूर उतरे और सुखन से नूर बरसे
मुकाबिल हो अगर गर्दूं समझ लेना कि होली है
बधाई रंग-ऐ-मौसम की हवाएं गोद भर लायें
कलम जब रंग बरसाए ,समझ लेना कि होली है
मुकाबिल हो अगर गर्दूं समझ लेना कि होली है
बधाई रंग-ऐ-मौसम की हवाएं गोद भर लायें
कलम जब रंग बरसाए ,समझ लेना कि होली है
Monday, March 2, 2009
तुम मिले
तुम मिले चम्पा चमेली हो लिए
मधु मालिनी मकरंद केसर घोलिए
शब्द निसृत हो रहे अमृत सरित
रूपरागी हूँ कमल मुख खोलिए
बहती रहे यह शब्द धारा
भीगता जिससे किनारा
श्रंगार की मनुहार में जीवन कटा
अनुरागकामी हूँ सतत सुख घोलिये
शब्द की माया प्रबल
अनुराग के धागे निबल
प्रेम का साधक निम्न्त्र्ण दे रहा
नित अनवरत प्रिय बोलिए
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